Sunday, May 27, 2012
Friday, May 18, 2012
महासिद्ध गुरू मत्स्येन्द्रनाथ चालीसा
Guru Matsyendranath Chalisa
गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।
हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥
'सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।
माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥
आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।
नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥
सकल लोक के सर्व सन्तो को सत-सत आदेश ॥
सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥
। ॐ नमः शिवाय ।
Sunday, October 30, 2011
श्री हनुमानजी का आकर्षण मंत्र
श्री हनुमानजी का आकर्षण मंत्र
"ॐ नमो आदेश गुरु को। हनुमान का ध्यान जाने। सारे राम-चन्द्र के काज। भूत को वश करे। वादी को मारे। धारे तेल और सिन्दूर, जासे भागे बैरी दूर। सत्य वीर हनुमान, बरस बारह का जवान। हाथ में लड्डू, मुख में पान। हनुमान गुणवन्ता, गजवन्ता धारे तार। गद्दी बैठे, राज करन्ता। अञ्जनी की दुहाई। पवन-पिता की दुहाई। सीता-सती की दुहाई। तेरी शक्ति, गुरु की भक्ति। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।"
विधिः- जब विशाखा नक्षत्र में 'चन्द्र-ग्रहण' हो, तब उक्त मन्त्र का जप आरम्भ करे। प्रतिदिन १००० जप ४० दिन तक करे। ४० हजार जप पूरा होने पर एक क्रम पूर्ण समझे। प्रतिदिन मन्त्र का स्मरण करता रहे। श्री हनुमानजी की सहायता की सदा अपेक्षा रखे। समय मिलने पर आगे १० क्रम करले, तो सदैव के लिए सिद्ध हो जाएगा।
"ॐ नमो आदेश गुरु को। हनुमान का ध्यान जाने। सारे राम-चन्द्र के काज। भूत को वश करे। वादी को मारे। धारे तेल और सिन्दूर, जासे भागे बैरी दूर। सत्य वीर हनुमान, बरस बारह का जवान। हाथ में लड्डू, मुख में पान। हनुमान गुणवन्ता, गजवन्ता धारे तार। गद्दी बैठे, राज करन्ता। अञ्जनी की दुहाई। पवन-पिता की दुहाई। सीता-सती की दुहाई। तेरी शक्ति, गुरु की भक्ति। फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा।"
विधिः- जब विशाखा नक्षत्र में 'चन्द्र-ग्रहण' हो, तब उक्त मन्त्र का जप आरम्भ करे। प्रतिदिन १००० जप ४० दिन तक करे। ४० हजार जप पूरा होने पर एक क्रम पूर्ण समझे। प्रतिदिन मन्त्र का स्मरण करता रहे। श्री हनुमानजी की सहायता की सदा अपेक्षा रखे। समय मिलने पर आगे १० क्रम करले, तो सदैव के लिए सिद्ध हो जाएगा।
Saturday, July 23, 2011
बजरंग बाण
बजरंग बाण
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
Tuesday, July 19, 2011
Friday, July 15, 2011
शीघ्र धन प्राप्ति के लिए
“ॐ नमः कर घोर-रुपिणि स्वाहा”
विधिः उक्त मन्त्र का जप प्रातः ११ माला देवी के किसी सिद्ध स्थान या नित्य पूजन स्थान पर करे। रात्रि में १०८ मिट्टी के दाने लेकर किसी कुएँ पर तथा सिद्ध-स्थान या नित्य-पूजन-स्थान की तरफ मुख करके दायाँ पैर कुएँ में लटकाकर व बाँएँ पैर को दाएँ पैर पर रखकर बैठे। प्रति-जप के साथ एक-एक करके १०८ मिट्टी के दाने कुएँ में डाले। ग्तारह दिन तक इसी प्रकार करे। यह प्रयोग शीघ्र आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए है।
“ॐ नमः कर घोर-रुपिणि स्वाहा”
विधिः उक्त मन्त्र का जप प्रातः ११ माला देवी के किसी सिद्ध स्थान या नित्य पूजन स्थान पर करे। रात्रि में १०८ मिट्टी के दाने लेकर किसी कुएँ पर तथा सिद्ध-स्थान या नित्य-पूजन-स्थान की तरफ मुख करके दायाँ पैर कुएँ में लटकाकर व बाँएँ पैर को दाएँ पैर पर रखकर बैठे। प्रति-जप के साथ एक-एक करके १०८ मिट्टी के दाने कुएँ में डाले। ग्तारह दिन तक इसी प्रकार करे। यह प्रयोग शीघ्र आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए है।
Sunday, July 3, 2011
।। नारायणास्त्रम् ।।
।। नारायणास्त्रम् ।।
हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो नारायणाय विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं अजीर्णं पञ्चविषूचिकां हन हन ऐकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय चतुरशितिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन हन सर्वदोषान् भंजय भंजय तत्सर्वं नाशय नाशय आकर्षय आकर्षय शत्रून् शत्रून् मारय मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय विदे्वेषय स्तंभय स्तंभय निवारय निवारय विघ्नैर्हन विघ्नैर्हन दह दह मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय छेदय भेदय भेदय चतुःशीतानि विस्फोटय विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिंहव्याघ्र द्विपदचतुष्पद पद बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान् हन हन विद्युन्मेघनदी पर्वताटवीसर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वशं कुरु कुरु हरिः ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठः ठं ठं ठः नमः ।।
हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो नारायणाय विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं अजीर्णं पञ्चविषूचिकां हन हन ऐकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय चतुरशितिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन हन सर्वदोषान् भंजय भंजय तत्सर्वं नाशय नाशय आकर्षय आकर्षय शत्रून् शत्रून् मारय मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय विदे्वेषय स्तंभय स्तंभय निवारय निवारय विघ्नैर्हन विघ्नैर्हन दह दह मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय छेदय भेदय भेदय चतुःशीतानि विस्फोटय विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिंहव्याघ्र द्विपदचतुष्पद पद बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान् हन हन विद्युन्मेघनदी पर्वताटवीसर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वशं कुरु कुरु हरिः ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठः ठं ठं ठः नमः ।।